अपने दैनंदिन जीवन
में बेहतरी की कोशिश में किए गए काम से भी शोध और अनुसंधान संभव है। गोरों
ने सदियों यही किया और आज कहीं पहुँचे हैं ।
अब हम वही करें तो हमारे सर पे लिटरेचर का पहाड़ पटक दिया जाता है कि ये पढ़ो
फिर ही कुछ करने की सोचो। आधी ज़िन्दगी उस पहाड़ पे चढ़ने में गुज़र जाए और
आधी उस पहाड़ की ऊंचाई को थोड़ा और बढ़ाने के लिए कुछ और कंकड़ पत्थर बटोरने में, ताकि हम जैसा गरीब आगे उस पहाड़ को लांघने की सोचे भी ना । इस
चक्कर में आदमी भूल ही जाए की वो करना क्या चाहता है। इतने बड़े गोरख धंधे
ने आज करोड़ो लोगों को ये सोचने पे मजबूर कर रखा है की वे किसी काम के नहीं।
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